Thursday, November 10, 2011

Gods Blessing www bkvarta com

तनाव मुक्त जीवन के सुनहरे विचार


तनाव मुक्त जीवन के सुनहरे विचार 
  • जीवन की हर एक घटना में किसी न किसी रूप से आपको लाभ ही होता है.परोक्ष रूप से होने वाले लाभ के बारे  में ही सदैव सोचिये .
  • भूतकाल में की गई गलतियों का पश्चाताप न करें तथा भविष्य की चिंता न करें.वर्तमान को सफल बनाने के लिए पूरा ध्यान दीजिये.आज ही दिन आपके हाँथ में है.आज आप रचनात्मक कार्य करेंगें तो कल की गलतियाँ मिट जाएगी और भविष्य में अवश्य लाभ होगा.    
  • आप अपने जीवन की तुलना अन्य के साथ कर चिंतित न हों.क्योंकि इस विश्व में आप एक अनोखे और विशिष्ट व्यक्ति हैं.इस विश्व में आपके और जैसा कोई नहीं है .
  • सदैव याद रखिये कि आपकी निंदा करने वाला आपका मित्र है जो आपसे बिना मूल्य एक मनोचिकित्सक की भांति आपकी गलतियों व आपकी खामियों की तरफ आपका ध्यान खिचवाता है.
  • आप दुख पहुँचाने वाले को क्षमा कर दो तथा उसे भूल जाओ.
  • सभी समस्याओं को एक साथ सुलझाने का प्रयत्न करके मुझना नहीं.एक समय पर एक ही समस्या का समाधान करें
  • जितना हो सके उतना दूसरों के सहयोगी बनने का प्रयत्न करें.दूसरों के सहायक बनने से आप अपनी चिंताओं को अवश्य भूल जायेंगें
  • जीवन में आ रही समस्याओं को देखने का दृष्टिकोण बदलें.दृष्टिकोण को बदलने से आप दुख को सुख में परिवर्तन कर सकेंगें.
  • जिस परिस्थिति को आप नहीं बदल सकते उसके बारे में सोंच कर दुखी मत हों.याद रखिये कि समय एक श्रेष्ठ दवा है.
  • यह सृष्टी एक विशाल नाटक है जिसमे हम सभी अभिनेता हैं.हर एक अभिनेता अपना श्रेष्ठ अभिनय अदा कर रहा है .इसलिए किसी के भी अभिनय को देख कर चिंतित न हों.
  • बदला न लो लेकिन पहले स्वयं को बदलने का प्रयत्न करो.बदला लेने कि इच्छा से तो मानसिक तनाव ही बढ़ता है.स्वयं को बदलने का प्रयत्न करने से जीवन में प्रगति होती है
  •  ईर्ष्या न करो परन्तु ईश्वर का चिंतन करो.ईर्ष्या करने से तो मन जलता है परन्तु ईश्वर का चिंतन करने से मन असीम शीतलता का अनुभव करता है
  • जब आप समस्याओं का सामना करतें है तो ऐसा सोंचिये कि आपके भूतकाल के कर्मों का हिसाब चुक्तु (चुकता ) हो रहा है.
  • आपके अन्दर रहा थोडा भी अहंकार मन कि स्थिति में असंतुलन का निर्माण करता है.इसलिए उस थोड़े भी अहंकार का भी त्याग करिये .ययद रखिये कि आप खली हाँथ आयें थे और खली हाँथ ही वापस जायेंगें.
  • दिन में चार पांच बार कुछ मिनट अपने संकल्पों को साक्षी होकर देखने का अभ्यास ,चिंताओं से मुक्त करने में सहायक बनता है.
  • अप अपनी सभी चिंताएं परमपिता परमात्मा को समर्पित कर दीजियेआता है वह तनाव एवं चिंताओं को दूर करके स्वाथ्य में वृद्धि करता है। 

ध्या‍न और सेवा


बोध कथा- ध्या‍न और सेवा

एक बार ज्ञानेश्‍वर महाराज सुब‍‍ह-सुबह‍ नदी तट पर टहलने निकले। उनहोनें देखा कि एक लड़का नदी में गोते खा रहा है। नजदीक ही, एक सन्‍यासी ऑखें मूँदे बैठा था। ज्ञानेश्वर महाराज तुरंत नदी में कूदे, डूबते लड़के को बाहर निकाला और फिर सन्‍यासी को पुकारा। संन्‍यासी ने आँखें खोलीं तो ज्ञानेश्वर जी बोले- क्‍या आपका ध्‍यान लगता है? संन्‍यासी ने उत्तर दिया- ध्‍यान तो नही लगता, मन इधर-उधर भागता है। ज्ञानेश्वर जी ने फिर पूछा लड़का डूब रहा था, क्‍या आपको दिखाई नही दिया? उत्‍तर मिला- देखा तो था लेकिन मैं ध्‍यान कर रहा था। ज्ञानेश्वर समझाया- आप ध्‍यान में कैसे सफल हो सकते है? प्रभु ने आपको किसी का सेवा करने का मौका दिया था, और यही आपका कर्तव्‍य भी था। यदि आप पालन करते तो ध्‍यान में भी मन लगता। प्रभु की सृष्टि, प्रभु का बगीचा बिगड़ रहा है1 बगीचे का आनन्‍द लेना है, तो बगीचे का सँवरना सीखे।

यदि आपका पड़ोसी भूखा सो रहा है और आप पूजा पाठ करने में मस्‍त है, तो यह मत सोचिये कि आपके द्वारा शुभ कार्य हो रहा है क्‍योकि भूखा व्‍यक्ति उसी की छवि है, जिसे पूजा-पाठ करके आप प्रसन्‍न करना या रिझाना चाहते है।  ईश्‍वर द्वारा सृजित किसी भी जीव व संरचना की उपेक्षा करके प्रभु भजन करने से प्रभु कभी प्रसन्‍न नही होगें।

बोध कथा

बोध कथा - 

 जहां अभिमान होता है वहां कभी ज्ञान नहीं होता ज्ञान को पाने के लिए इंसान को अपना अहंकार को छोडना पड़ता है।

इंसान को कभी अपनी शक्तियों और सम्पत्ति पर अभिमान नहीं करना चाहिए क्यों कि माया व्यक्ति को बुद्धिहीन कर देती है। और बुद्धिहीन लोग जीवन में कभी ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते।
एक बार एक जानश्रुति नाम का राजा था उसे अपनी सम्पत्ती पर बड़ा घमंड था एक रात कुछ हंस राजा के कमरे की छत पर आकर बात करने लगे एक हंस बोला कि राजा का तेज चारों ओर फैला है उससे बड़ा कोई नहीं तभी दूसरा हंस बोला कि तुम गाड़ी वाले रैक्क को नहीं जानते उनके तेज के सामने राजा का तेज कुछ भी नहीं है। राजा ने सुबह उठते ही रैक्क बाबा को ढूढ़कर लाने के लिए कहा राजा के सेवक बड़ी मुश्किल से रैक्क बाबा का पता लगाकर आए। तब राजा बहुत सा धन लेकर साधू के पास पहुंचा और साधू से कहने लगा कि ये सारा धन में आपके लिए लाया हूं कृपया कर इसे ग्रहण करें और आप जिस देवता की उपासना करते हे उसका उपदेश मुझे दीजिए साधू ने राजा को वापस भेज दिया।
अगले दिन राजा और ज्यादा धन और साथ में अपनी बेटी को लेकर साधू के पास पहुंचा और बोला हे श्रेष्ठ मुनि मैं यह सब आपके लिए लाया हूं आप इसे ग्रहण कर मुझे ब्रह्मज्ञान प्रदान करें तब साधू ने कहा कि हे मूर्ख राजा तू तेरी ये धन सम्पत्ति अपने पास रख ब्रह्मज्ञान कभी खरीदा नहीं जाता। राजा का अभिमान चूर चूर हो गया और उसे पछतावा होने लगा।कथा बताती है कि जहां अभिमान होता है वहां कभी ज्ञान नहीं होता ज्ञान को पाने के लिए इंसान को अपना अहंकार को छोडना पड़ता है।